PSEB 10th भूगोल पाठ 5 – खनिज पदार्थ और ऊर्जा संसाधन

minerals and Energy Resources
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अभ्यास (Exercise)

1. बहु-विकल्पीय प्रश्नः- (Multiple-Choice Questions)

(i) निम्नलिखित में से कौन सी खनिजों की विशेषता नहीं है?
(क) एकल गुणी (खनिज विभिन्न गुणों वाले होते हैं।)

(ii) रूहक घाटी किस देश में स्थित है?
(ख) जर्मनी (पाठ में ‘रूहर/रुर’ घाटी का उल्लेख है जो पश्चिमी जर्मनी में है।)

(iii) कौन से साधन पारंपरिक ऊर्जा स्रोत हैं?
(घ) कोयला और पैट्रोलियम

(iv) मुंबई हाई क्या है?
(ख) तेल उत्पादक स्थान

(v) जोड़िए:
(i) इस्पात काल – (b) 1780-1980
(ii) कांस्य काल – (c) ताँबा+टिन (कलई)
(iii) लौह काल – (a) हज़ार वर्ष पूर्व (लगभग 3000 वर्ष पूर्व)
(iv) सिलीकोन काल – (d) 1980 के बाद

2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 30 शब्दों तक दीजिए:- (Answer in up to 30 words)

(i) धात्विक खनिज क्या होते हैं?
उत्तर: धात्विक खनिज वे खनिज होते हैं जिनमें धातु पाई जाती है, जैसे तांबा, सोना, मैंगनीज, बॉक्साइट इत्यादि। इन्हें लौह युक्त और अलौह धातुओं में उपविभाजित किया जाता है।

(ii) भारत के कोई पाँच कोयला उत्पादक राज्यों के नाम लिखिए।
उत्तर: भारत के पाँच प्रमुख कोयला उत्पादक राज्य हैं: झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, पश्चिमी बंगाल, और मध्य प्रदेश।

(iii) कच्चे लोहे की किस्में और उनमें लौह-धातु अंश लिखिए।
उत्तर: कच्चे लोहे की मुख्य किस्में हैं: मैग्नेटाइट (70% या अधिक लौह), हेमटाइट (60-70% लौह), लिमोनाइट (50-60% लौह), और साइडराइट (50% से कम लौह)।

(iv) ‘भारत की रूर’ कौन सा क्षेत्र है और क्यों?
उत्तर: दामोदर घाटी क्षेत्र (झारखंड, पश्चिमी बंगाल) को ‘भारत की रूर’ कहा जाता है क्योंकि यह कोयला और अभ्रक जैसे खनिजों से भरपूर है और यहाँ बड़ा औद्योगिकीकरण हुआ है, जो जर्मनी की रूर घाटी के समान है।

(v) ब्रह्मपुत्र घाटी के ऊपरी तेल भंडारों पर नोट लिखिए।
उत्तर: ऊपरी ब्रह्मपुत्र घाटी भारत का सबसे पहला कच्चा तेल उत्पादक क्षेत्र था। यह दिहांग बेसिन से सूरमा घाटी तक फैला है, और इसके मुख्य तेल कुएं असम के डिब्रूगढ़ और सिबसागर जिलों में स्थित हैं।

(vi) अपारंपरिक ऊर्जा स्रोतों से क्या अभिप्राय है?
उत्तर: अपारंपरिक ऊर्जा स्रोत वे ऊर्जा साधन हैं जो पारंपरिक स्रोतों (जैसे कोयला, पेट्रोलियम) के विकल्प के रूप में उभरे हैं। ये प्रायः नवीकरणीय और असीमित होते हैं, जैसे सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा।

(vii) पथराट/जीवाश्म ईंधन क्या है?
उत्तर: जीवाश्म ईंधन (जैसे कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस) हाइड्रोकार्बन होते हैं जो लाखों वर्षों तक पृथ्वी की सतह के नीचे दबे पौधों और जानवरों के अवशेषों से ताप और दाब के कारण बनते हैं।

(viii) ‘पंजाब के खनिज सरमाया’ पर नोट लिखो।
उत्तर: पंजाब की भौगोलिक संरचना मुख्यतः नदियों द्वारा लाई गई जलोढ़ मृदा से हुई है, इसलिए यहाँ तलछटी चट्टानें (रेत, चीकनी मिट्टी, कंकड़) मिलती हैं। अग्नि या रूपांतरित चट्टानों वाले खनिजों की यहाँ कमी है। निर्माण कार्यों में प्रयुक्त रेत, बजरी आदि मिलते हैं।

3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों तक दीजिए:- 

(i) भारत में अपारंपरिक ऊर्जा साधनों की व्याख्या करें।
उत्तर: भारत, अपनी तीव्र आर्थिक वृद्धि और विशाल जनसंख्या के साथ, ऊर्जा का एक प्रमुख उपभोक्ता है। पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों जैसे कोयला और पेट्रोलियम पर अत्यधिक निर्भरता न केवल सीमित भंडारों पर दबाव डालती है, बल्कि गंभीर पर्यावरणीय समस्याएं भी उत्पन्न करती है। इस संदर्भ में, भारत में अपारंपरिक ऊर्जा साधनों का विकास और उपयोग अत्यंत महत्वपूर्ण हो गया है। ये स्रोत नवीकरणीय, प्राकृतिक रूप से प्रचुर और सामान्यतः पर्यावरण के अनुकूल होते हैं।

  • सौर ऊर्जा: भारत को वर्ष में औसतन 300 से अधिक धूप वाले दिन प्राप्त होते हैं, जिससे यह सौर ऊर्जा के लिए एक आदर्श स्थान बनता है। सरकार ने ‘जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय सौर मिशन’ जैसी महत्वाकांक्षी योजनाओं के माध्यम से सौर ऊर्जा उत्पादन को व्यापक बढ़ावा दिया है। इसका उपयोग घरों में पानी गर्म करने, प्रकाश व्यवस्था, कृषि में सिंचाई पंप चलाने और बड़े पैमाने पर ग्रिड से जुड़े विद्युत संयंत्रों के संचालन में किया जा रहा है। छत पर सौर पैनल लगाने की योजनाएँ भी लोकप्रिय हो रही हैं।

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  • पवन ऊर्जा: भारत के पास एक विस्तृत तटरेखा और कई ऐसे भू-भाग हैं जहाँ तेज हवाएँ चलती हैं, जो पवन ऊर्जा उत्पादन के लिए उपयुक्त हैं। तमिलनाडु, गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान और कर्नाटक जैसे राज्यों में बड़े पवन फार्म स्थापित किए गए हैं। पवन टर्बाइनों के माध्यम से उत्पन्न बिजली सीधे ग्रिड में भेजी जाती है।

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  • ज्वारीय ऊर्जा: समुद्र में ज्वार-भाटे से उत्पन्न होने वाली ऊर्जा का उपयोग टर्बाइन चलाकर बिजली बनाने में किया जा सकता है। भारत में खंभात की खाड़ी, कच्छ की खाड़ी और सुंदरबन डेल्टा जैसे क्षेत्रों में ज्वारीय ऊर्जा की महत्वपूर्ण क्षमता मौजूद है, हालांकि इसका वाणिज्यिक दोहन अभी प्रारंभिक अवस्था में है।

  • भू-तापीय ऊर्जा: पृथ्वी के गर्भ में संग्रहीत ऊष्मा का उपयोग बिजली उत्पादन या प्रत्यक्ष तापन के लिए किया जा सकता है। हिमाचल प्रदेश की पुगा घाटी, छत्तीसगढ़ का तातापानी और गुजरात के कुछ क्षेत्रों में गर्म पानी के झरने भू-तापीय ऊर्जा की संभावना दर्शाते हैं।

  • जैव ऊर्जा (बायोमास और बायोगैस): कृषि अपशिष्ट, पशुओं का गोबर, शहरी ठोस अपशिष्ट और अन्य जैविक पदार्थों का उपयोग बायोमास ऊर्जा उत्पादन या बायोगैस बनाने में किया जाता है। बायोगैस ग्रामीण क्षेत्रों में खाना पकाने और प्रकाश के लिए एक स्वच्छ ईंधन विकल्प प्रदान करती है।

इन अपारंपरिक ऊर्जा स्रोतों का विकास न केवल भारत की ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करेगा, बल्कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने, प्रदूषण घटाने और सतत विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। सरकार विभिन्न नीतियों, प्रोत्साहनों और सब्सिडी के माध्यम से इन क्षेत्रों में निवेश को प्रोत्साहित कर रही है।

(ii) खनिज साधनों की बचत से क्या अभिप्राय है? इस के लिए क्या-क्या कदम उठाए जा रहे हैं?
उत्तर: खनिज साधनों की बचत से अभिप्राय है खनिजों का बुद्धिमानी, मितव्ययतापूर्ण और सतत तरीके से उपयोग करना ताकि उनकी उपलब्धता वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों दोनों के लिए सुनिश्चित की जा सके। खनिज प्रकृति के अनवीकरणीय उपहार हैं, जिनके निर्माण में लाखों वर्ष लगते हैं, और इनका अंधाधुंध दोहन इन्हें शीघ्र समाप्त कर सकता है। इसलिए, इनका संरक्षण और विवेकपूर्ण उपयोग अत्यंत आवश्यक है।

खनिज साधनों की बचत के लिए निम्नलिखित महत्वपूर्ण कदम उठाए जा रहे हैं:

  1. योजनाबद्ध और नियंत्रित खनन: खनिजों के निष्कर्षण को वैज्ञानिक और योजनाबद्ध तरीके से करना ताकि बर्बादी कम हो और केवल आवश्यक मात्रा में ही खनन किया जाए। अवैध खनन पर रोक लगाना भी इसका एक महत्वपूर्ण पहलू है।

  2. पुनर्चक्रण (Recycling) और पुनः उपयोग (Reuse): विशेषकर धात्विक खनिजों जैसे लोहा, एल्यूमीनियम, तांबा आदि के कबाड़ (scrap) का पुनर्चक्रण करके उन्हें पुनः उपयोग में लाना। इससे नए अयस्कों के खनन की आवश्यकता कम होती है, ऊर्जा की बचत होती है और प्रदूषण भी घटता है।

  3. वैकल्पिक पदार्थों का विकास और उपयोग: जिन अनुप्रयोगों में संभव हो, वहाँ खनिजों के स्थान पर उनके सस्ते, आसानी से उपलब्ध और पर्यावरण के अनुकूल विकल्पों का उपयोग करना। उदाहरण के लिए, कुछ धातुओं के स्थान पर उन्नत प्लास्टिक, फाइबर या सिरेमिक का उपयोग।

  4. उन्नत प्रौद्योगिकियों का प्रयोग: खनन, प्रसंस्करण और शोधन में ऐसी आधुनिक तकनीकों का उपयोग करना जिनसे निम्न श्रेणी के अयस्कों का भी लाभकारी ढंग से उपयोग किया जा सके और प्रक्रिया के दौरान खनिजों की हानि न्यूनतम हो।

  5. खनिज संरक्षण नीतियां और कानून: सरकार द्वारा खनिज संरक्षण को बढ़ावा देने वाली नीतियां बनाना और उनका सख्ती से कार्यान्वयन सुनिश्चित करना।

  6. जन जागरूकता और शिक्षा: आम जनता, उद्योगों और नीति निर्माताओं को खनिजों के महत्व, उनकी सीमित उपलब्धता और संरक्षण की आवश्यकता के प्रति जागरूक करना।

  7. उत्पादों का स्थायित्व बढ़ाना: ऐसे उत्पादों का निर्माण करना जो अधिक टिकाऊ हों, ताकि उन्हें बार-बार बदलने की आवश्यकता न पड़े, जिससे अप्रत्यक्ष रूप से खनिजों की खपत कम हो।

इन समन्वित प्रयासों के माध्यम से हम अपने बहुमूल्य खनिज संसाधनों का संरक्षण कर सकते हैं और सतत विकास की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं।

(iii) पारंपरिक और अपारंपरिक साधनों (स्रोतों) की तुलना कीजिए।
उत्तर: ऊर्जा के पारंपरिक और अपारंपरिक साधन हमारी आधुनिक जीवनशैली और आर्थिक विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं, लेकिन उनकी प्रकृति, उपलब्धता और पर्यावरणीय प्रभावों में काफी भिन्नताएँ हैं।

तुलना का आधार पारंपरिक ऊर्जा स्रोत (Conventional Energy Sources) अपारंपरिक ऊर्जा स्रोत (Non-Conventional Energy Sources)
प्रकृति एवं उपलब्धता ये मुख्यतः अनवीकरणीय (Non-renewable) होते हैं, अर्थात इनके भंडार सीमित हैं और इनके पुनः निर्माण में लाखों वर्ष लगते हैं। जीवाश्म ईंधन (कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस) इसके प्रमुख उदाहरण हैं। ये प्रायः नवीकरणीय (Renewable) होते हैं, अर्थात ये प्राकृतिक रूप से निरंतर पुनः पूरित होते रहते हैं और इनके भंडार असीमित माने जाते हैं (जैसे सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा)।
पर्यावरणीय प्रभाव इनके दहन से ग्रीनहाउस गैसों (जैसे CO2), सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड आदि का उत्सर्जन होता है, जो वायु प्रदूषण, अम्ल वर्षा और वैश्विक तापन जैसी समस्याओं के प्रमुख कारण हैं। ये सामान्यतः स्वच्छ ऊर्जा स्रोत माने जाते हैं और इनका पर्यावरणीय प्रभाव बहुत कम या नगण्य होता है। ये प्रदूषण रहित या कम प्रदूषणकारी होते हैं।
लागत प्रारंभिक निष्कर्षण और प्रसंस्करण संयंत्रों की लागत के अतिरिक्त, ईंधन की लागत निरंतर बनी रहती है और अंतर्राष्ट्रीय कीमतों से प्रभावित होती है। प्रारंभिक स्थापना लागत (जैसे सौर पैनल, पवन टर्बाइन) अधिक हो सकती है, परंतु इनके परिचालन और ईंधन की लागत लगभग शून्य या बहुत कम होती है।
निर्भरता एवं सुरक्षा इन पर अत्यधिक निर्भरता आयात पर निर्भरता बढ़ा सकती है (विशेषकर पेट्रोलियम के मामले में) और ऊर्जा सुरक्षा को प्रभावित कर सकती है। ये स्थानीय रूप से उपलब्ध संसाधनों पर आधारित होते हैं, जिससे ऊर्जा आत्मनिर्भरता बढ़ती है और ऊर्जा सुरक्षा मजबूत होती है।
प्रौद्योगिकी इनकी प्रौद्योगिकी सुविकसित और लंबे समय से उपयोग में है। इनकी प्रौद्योगिकी अपेक्षाकृत नवीन है और इसमें निरंतर अनुसंधान और विकास हो रहा है, जिससे इनकी दक्षता बढ़ रही है और लागत कम हो रही है।
उदाहरण कोयला, पेट्रोलियम (डीजल, पेट्रोल), प्राकृतिक गैस, परमाणु ऊर्जा (कुछ हद तक)। सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, जल विद्युत (बड़े बांधों को छोड़कर), भू-तापीय ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा, बायोमास, बायोगैस।

निष्कर्षतः, ऊर्जा सुरक्षा और पर्यावरणीय स्थिरता के लिए पारंपरिक स्रोतों पर निर्भरता कम करते हुए अपारंपरिक, स्वच्छ और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की ओर बढ़ना समय की मांग है। भारत सरकार इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठा रही है।

(iv) निम्नलिखित पर एक नोट लिखिएः
(क) मकराना (राजस्थान) पत्थर खनन
उत्तर: मकराना, राजस्थान के नागौर जिले में स्थित एक ऐतिहासिक शहर है, जो अपने उत्कृष्ट गुणवत्ता वाले सफेद संगमरमर के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है। यहाँ से निकलने वाला संगमरमर अपनी दूधिया सफेदी, महीन दानेदार संरचना, उच्च चमक और असाधारण स्थायित्व के लिए जाना जाता है। अंतर्राष्ट्रीय भूवैज्ञानिक विज्ञान संघ (International Union of Geological Sciences) ने मकराना संगमरमर को “वैश्विक विरासत पत्थर संसाधन” (Global Heritage Stone Resource) के रूप में मान्यता दी है, जो इसके अद्वितीय महत्व को रेखांकित करता है।
मकराना संगमरमर का सबसे प्रतिष्ठित उपयोग आगरा स्थित ताजमहल के निर्माण में हुआ है, जिसकी बेमिसाल सुंदरता आज भी दुनिया को अचंभित करती है। इसके अतिरिक्त, कोलकाता का विक्टोरिया मेमोरियल और कई अन्य ऐतिहासिक व आधुनिक इमारतों, मंदिरों तथा मूर्तियों के निर्माण में भी इसका प्रयोग किया गया है।
मकराना में संगमरमर का खनन सदियों से होता आ रहा है। यहाँ कई खदानें हैं, जैसे डुंगरी, देवी, उलोडी, साबवली, गुलाबी, कुमारी, नहरखान, माताभर आदि, जहाँ से विभिन्न प्रकार और गुणवत्ता का संगमरमर निकाला जाता है। खनन प्रक्रिया काफी श्रमसाध्य और चुनौतीपूर्ण होती है, जिसमें चट्टानों को काटकर बड़े-बड़े ब्लॉक निकाले जाते हैं, जिन्हें बाद में प्रसंस्करण इकाइयों में भेजा जाता है।
यह उद्योग न केवल राजस्थान की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देता है, बल्कि हजारों लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार भी प्रदान करता है। हालांकि, खनन गतिविधियों के कारण पर्यावरणीय चिंताएँ भी उभरी हैं, जैसे धूल प्रदूषण, जल संसाधनों पर दबाव और भूमि क्षरण। इन चुनौतियों से निपटने के लिए सतत खनन पद्धतियों और पर्यावरण संरक्षण उपायों को अपनाना आवश्यक है ताकि इस बहुमूल्य प्राकृतिक विरासत का संरक्षण किया जा सके।

(ख) कोलार और हट्टी सोना खानें
उत्तर: कोलार गोल्ड फील्ड्स (KGF) और हट्टी गोल्ड माइन्स कर्नाटक राज्य में स्थित भारत की दो सबसे प्रसिद्ध और ऐतिहासिक सोने की खानें हैं। ये खानें धारवाड़ क्रेटन के प्रीकैम्ब्रियन काल की ज्वालामुखी-अवसादी चट्टानों से बनी “शिस्ट बेल्ट” में स्थित हैं, जो सोने जैसे बहुमूल्य खनिजों के लिए जानी जाती हैं।

  • कोलार गोल्ड फील्ड्स (KGF): कोलार, कभी दुनिया की सबसे गहरी और सबसे अधिक सोना उत्पादक खानों में से एक हुआ करती थी। यहाँ ब्रिटिश काल में 19वीं सदी के अंत में बड़े पैमाने पर खनन शुरू हुआ और इसने भारत के स्वर्ण उत्पादन में दशकों तक प्रमुख भूमिका निभाई। KGF की खदानें अपनी अत्यधिक गहराई (कुछ स्थानों पर 3 किलोमीटर से भी अधिक) के लिए जानी जाती थीं। यहाँ का सोना उच्च शुद्धता वाला माना जाता था। हालांकि, अयस्क की गुणवत्ता में कमी, बढ़ती खनन लागत और गहराई के कारण आने वाली तकनीकी चुनौतियों के चलते, भारत सरकार ने वर्ष 2001 में KGF में खनन कार्य आधिकारिक रूप से बंद कर दिया। इसके बावजूद, इस क्षेत्र का ऐतिहासिक और भूवैज्ञानिक महत्व आज भी बरकरार है।

  • हट्टी गोल्ड माइन्स: हट्टी, रायचूर जिले में स्थित है और यह वर्तमान में भारत की प्रमुख क्रियाशील सोने की खानों में से एक है। यहाँ प्राचीन काल से ही सोने का खनन होता रहा है, जिसके प्रमाण मिलते हैं। आधुनिक खनन कार्य 20वीं सदी की शुरुआत में पुनः प्रारंभ हुआ। हट्टी गोल्ड माइन्स कंपनी लिमिटेड (HGML), जो कर्नाटक सरकार का एक उपक्रम है, यहाँ खनन और स्वर्ण उत्पादन का कार्य करती है। यह खान अभी भी भारत के घरेलू स्वर्ण उत्पादन में महत्वपूर्ण योगदान दे रही है।
    इन दोनों खान क्षेत्रों ने न केवल भारत की अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया है, बल्कि इन्होंने खनन प्रौद्योगिकी, भूविज्ञान और सामाजिक-आर्थिक विकास के अध्ययन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

(ग) हिमाचल प्रदेश का काला नमक खनन
उत्तर: हिमाचल प्रदेश का मंडी जिला, अपने अद्वितीय गुलाबी रंग के चट्टानी नमक के लिए प्रसिद्ध है, जिसे स्थानीय भाषा में अक्सर “काला नमक” या “गुमा नमक” (गुमा और द्रंग खानों के नाम पर) कहा जाता है। यह नमक हिमालय की भीतरी पर्वत श्रृंखलाओं में पाया जाता है और इसका निर्माण लाखों वर्ष पूर्व समुद्री जल के वाष्पीकरण और भूगर्भीय परिवर्तनों के परिणामस्वरूप हुआ माना जाता है।
मंडी जिले में गुमा और द्रंग नामक स्थानों पर इस चट्टानी नमक की ऐतिहासिक खानें स्थित हैं। इन खानों से पारंपरिक तरीकों से नमक का खनन सदियों से होता आ रहा है। यह नमक अपनी प्राकृतिक शुद्धता और विशिष्ट खनिज संरचना के कारण जाना जाता है, जिसमें सोडियम क्लोराइड के अतिरिक्त अन्य सूक्ष्म खनिज भी पाए जाते हैं, जो इसे एक विशेष स्वाद और स्वास्थ्य लाभ प्रदान करते हैं।
हिमाचल प्रदेश में इस नमक का उपयोग न केवल भोजन में किया जाता है, बल्कि इसका औषधीय महत्व भी माना जाता है, विशेषकर पाचन संबंधी समस्याओं और पशुओं के स्वास्थ्य के लिए। पारंपरिक रूप से, यह नमक स्थानीय लोगों की आय का भी एक स्रोत रहा है।
वर्तमान में, इन खानों में उत्पादन सीमित है और खनन प्रक्रिया भी काफी हद तक पारंपरिक है। हालांकि, इस नमक की बढ़ती मांग और इसके स्वास्थ्य लाभों को देखते हुए, हिमाचल प्रदेश सरकार और संबंधित एजेंसियां इन खानों के वैज्ञानिक विकास और उत्पादन बढ़ाने की संभावनाओं पर विचार कर रही हैं। सॉल्यूशन माइनिंग जैसी आधुनिक तकनीकों का उपयोग करके उत्पादन बढ़ाने और इस प्राकृतिक संसाधन का बेहतर प्रबंधन करने के प्रयास किए जा रहे हैं ताकि इसकी उपलब्धता सुनिश्चित की जा सके और स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी बढ़ावा मिले।

(घ) भू-तापीय ऊर्जा साधन/स्रोत
उत्तर: भू-तापीय ऊर्जा पृथ्वी के आंतरिक भाग में संग्रहीत ऊष्मा से प्राप्त होने वाली एक नवीकरणीय और स्वच्छ ऊर्जा है। पृथ्वी का कोर अत्यंत गर्म है, और यह ऊष्मा धीरे-धीरे सतह की ओर विकीर्ण होती है। जिन क्षेत्रों में भू-तापीय गतिविधियाँ अधिक होती हैं, वहाँ यह ऊष्मा गर्म पानी के झरनों (गीजर), भाप के फव्वारों (फ्यूमरोल्स) या ज्वालामुखी के रूप में प्रकट होती है।
भू-तापीय ऊर्जा का उपयोग विभिन्न तरीकों से किया जा सकता है:

  1. विद्युत उत्पादन: उच्च तापमान वाले भू-तापीय भंडारों (150°C से अधिक) से निकलने वाली भाप या गर्म पानी का उपयोग टर्बाइन चलाकर बिजली उत्पन्न करने में किया जाता है। इसके लिए भू-तापीय ऊर्जा संयंत्र स्थापित किए जाते हैं। इसमें या तो सीधे भाप का उपयोग किया जाता है या गर्म पानी को कम दबाव पर लाकर भाप में परिवर्तित किया जाता है (फ्लैश स्टीम प्लांट), अथवा गर्म पानी से किसी अन्य कम क्वथनांक वाले तरल को गर्म करके उससे टर्बाइन चलाई जाती है (बाइनरी साइकिल प्लांट)।

  2. प्रत्यक्ष उपयोग: मध्यम से निम्न तापमान वाले भू-तापीय संसाधनों (20°C से 150°C) का उपयोग सीधे तापन के लिए किया जा सकता है। इसका उपयोग इमारतों को गर्म करने (डिस्ट्रिक्ट हीटिंग), ग्रीनहाउस, कृषि उत्पादों को सुखाने, मत्स्य पालन (एक्वाकल्चर) और स्पा आदि में होता है।

  3. भू-तापीय हीट पंप (Geothermal Heat Pumps): ये पंप पृथ्वी की सतह के निकट स्थिर तापमान का उपयोग इमारतों को गर्म करने और ठंडा करने के लिए करते हैं। ये अत्यधिक ऊर्जा कुशल माने जाते हैं।
    भारत में भू-तापीय ऊर्जा की महत्वपूर्ण क्षमता मौजूद है, विशेषकर हिमालयी क्षेत्रों (जैसे जम्मू-कश्मीर में पुगा घाटी, हिमाचल प्रदेश में मणिकरण), पश्चिमी घाट, सोन-नर्मदा-ताप्ती बेसिन और कैम्बे बेसिन में। छत्तीसगढ़ का तातापानी क्षेत्र भी इसके लिए जाना जाता है। सरकार इन क्षेत्रों में भू-तापीय ऊर्जा के विकास के लिए अनुसंधान और प्रायोगिक परियोजनाओं को बढ़ावा दे रही है। यह ऊर्जा स्रोत पारंपरिक जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता कम करने, कार्बन उत्सर्जन को घटाने और देश की ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करने में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है।

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  • vivkaushal23@hotmail.com

    Vivek Kaushal is a passionate educator with over 14 years of teaching experience. He holds an MCA and B.Ed. and is certified as a Google Educator Level 1 and Level 2. Currently serving as the Principal at Vivek Public Sr. Sec. School, Vivek is dedicated to fostering a dynamic and innovative learning environment for students. Apart from his commitment to education, he enjoys playing chess, painting, and cricket, bringing a creative and strategic approach to both his professional and personal life.

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