PSEB 10th भूगोल पाठ 4 – कृषि

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अभ्यास (Exercise)

1. बहु-विकल्पीय प्रश्न- (Multiple-Choice Questions)

(i) हरित क्रान्ति का पितामह निम्नलिखित में से किसे माना जाता है?
(क) एम.एस. स्वामीनाथन

(ii) कृषि ……….. आर्थिक क्रिया कहा जाता है।
(क) प्राथमिक

(iii) देश के कितने फीसदी श्रमिक कृषि क्षेत्र में रोज़गार अधीन हैं?
(घ) 45% 

(iv) कृषि की कौन सी किस्म प्राचीन कही जाती है?
(ख) स्थानांतरी कृषि (पृष्ठ 3 पर “स्थानांतरण कृषि केवल पिछले वन प्रदेशों में की जाती है यह सामान्य नहीं है।” यह प्राचीन तरीका है।)

(v) HYV सीडज़ से क्या अभिप्राय कौन से बीज है।
(क) हाई यीलडिंग वैराईटी (High Yielding Variety)

(vi) आपरेशन फ्लड (Operation Flood) किससे संबंधित है?
(ख) दूध उत्पादन से (पृष्ठ 5 पर श्वेत क्रांति/ऑपरेशन फ्लड का वर्णन है।)

(vii) चाय, काफ़ी और तम्बाकू कैसी फसलें है?
(घ) क और ख दोनों 

(viii) विश्व का सबसे बड़ा पटसन उत्पादक क्षेत्र कौन सा है?
(घ) सुंदरवन (पृष्ठ 10 पर स्पष्ट उल्लेख है।)

(ix) तराई क्षेत्र किस उत्पादन के साथ संबंधित है?
(ग) गन्ना उत्पादन (पृष्ठ 11 पर “तराई क्षेत्रः रिवायती गन्ना उत्पादक पेटी” का स्पष्ट उल्लेख है।)

(x) निम्नलिखित को जोड़ें:-
(i) धान, अरहर, माश/उड़द की दाल – (c) सावन की फसलें (खरीफ/सावनी फसलें, पृष्ठ 6)
(ii) वी.कुरीयन – (b) हाड़ी की फसलें (यह गलत है। वी. कुरीयन ऑपरेशन फ्लड/श्वेत क्रांति से संबंधित हैं – पृष्ठ 5)
सही मिलान:
(i) धान, अरहर, माश/उड़द की दाल – (c) सावन की फसलें (खरीफ फसलें)
(ii) वी.कुरीयन – (ऑपरेशन फ्लड/दूध उत्पादन से संबंधित – विकल्पों में नहीं है)
(iii) एम.एस. रंधावा – (d) पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पृष्ठ 1 पर PAU के वाइस चांसलर के रूप में उल्लेख)
(iv) बाजरा, सरसो, गेहूँ – (b) हाड़ी की फसलें (रबी फसलें, पृष्ठ 6. बाजरा खरीफ में भी आता है, लेकिन सरसों और गेहूँ स्पष्ट रूप से रबी हैं।)

दिए गए विकल्पों के आधार पर सर्वोत्तम प्रयास:
(i) धान, अरहर, माश/उड़द की दाल – (c) सावन की फसलें
(ii) वी.कुरीयन – कोई सीधा विकल्प नहीं, लेकिन दूध उत्पादन से संबंधित हैं।
(iii) एम.एस. रंधावा – (d) पंजाब कृषि विश्वविद्यालय
(iv) बाजरा, सरसो, गेहूँ – (b) हाड़ी की फसलें (मुख्यतः सरसों और गेहूँ के कारण)
(a) कश्मीर की घाटी का किसी से सीधा संबंध नहीं है।

2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 30 शब्दों तक दीजिए- (Answer in up to 30 words)

(i) भारत का कौन सा राज्य मसालों का बागान है और क्यों?
उत्तर: केरल भारत का ‘मसालों का बागान’ है (पृष्ठ 12)। यहाँ की उष्ण और आर्द्र जलवायु तथा उपजाऊ जलोढ़ मृदा विभिन्न प्रकार के मसालों जैसे काली मिर्च, इलायची, लौंग आदि की खेती के लिए उत्तम है।

(ii) पंजाब में कृषि के विकास के प्रति कृषि विश्वविद्यालय की भूमिका पर संक्षिप्त में नोट लिखें।
उत्तर: पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना (पृष्ठ 13) ने पंजाब में अनाज उत्पादन बढ़ाने और हरित क्रांति की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसने उन्नत बीज, आधुनिक कृषि तकनीकों और शिक्षा द्वारा कृषि विकास को बढ़ावा दिया।

(iii) ग्लोबल हंगर इंडैक्स (वैश्विक भूखमरी सूचकांक) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर: ग्लोबल हंगर इंडेक्स (पृष्ठ 14) विश्व, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर भुखमरी को मापने का एक सूचकांक है। यह चार संकेतकों पर आधारित है: अल्पपोषण, चाइल्ड वेस्टिंग, चाइल्ड स्टंटिंग और बाल मृत्यु दर।

(iv) हमारे लिए कृषि का महत्त्व क्या है?
उत्तर: कृषि हमारे लिए खाद्य सुरक्षा, आजीविका का प्रमुख स्रोत (विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में), और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था का आधार है। यह उद्योगों को कच्चा माल भी प्रदान करती है और लाखों लोगों को रोजगार देती है।

(v) व्यापारिक कृषि पर नोट लिखो।
उत्तर: व्यापारिक कृषि (पृष्ठ 4) में फसलें मुख्यतः बाजार में बेचने और मुनाफा कमाने के उद्देश्य से उगाई जाती हैं। इसमें आधुनिक तकनीकों, बड़े खेतों और अधिक पूंजी निवेश का प्रयोग होता है।

(vi) सावन की फसलों के संबंधी एक नोट लिखो।
उत्तर: सावन (खरीफ) की फसलें (पृष्ठ 6) जून-जुलाई में मानसून की शुरुआत में बोई जाती हैं और सितंबर-अक्टूबर में काटी जाती हैं। धान, बाजरा, मक्का, कपास, मूंगफली प्रमुख सावन फसलें हैं, जिन्हें अधिक नमी और तापमान चाहिए।

(vii) कम से कम समर्थन मूल्य शिक्षण के कोई आधार लिखें।
उत्तर: कम से कम समर्थन मूल्य (MSP) (पृष्ठ 15) तय करने के मुख्य आधार हैं: उत्पादन की लागत (A2, A2+FL, C2), मांग और पूर्ति, घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाजार कीमतें, तथा किसानों को लाभकारी मूल्य सुनिश्चित करना।

3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 250 शब्दों तक दीजिए- (Answer in up to 250 words)

(i) कृषि की किस्मों पर विस्तृत नोट लिखे।
उत्तर: भारत में भौगोलिक और वातावरणीय विविधता के कारण कृषि की अनेक किस्में प्रचलित हैं, जिन्हें विभिन्न आधारों पर वर्गीकृत किया जा सकता है।

  1. स्थानांतरण कृषि (Shifting Agriculture): (पृष्ठ 3) यह कृषि का एक आदिम रूप है जो मुख्यतः वन प्रदेशों में किया जाता है। इसमें किसान जंगल के एक हिस्से को साफ करके (जलाकर या काटकर) भूमि को खेती योग्य बनाते हैं और कुछ वर्षों (2-3 वर्ष) तक पारंपरिक उपकरणों से खेती करते हैं। उर्वरकों का प्रयोग नहीं होता। जब भूमि की उर्वरता कम हो जाती है, तो वे उस स्थान को छोड़कर नए स्थान पर यही प्रक्रिया दोहराते हैं। इसे उत्तर-पूर्वी राज्यों में ‘झूमिंग’ कहते हैं। मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, ओडिशा में भी यह प्रचलित है।

  2. निर्वाह कृषि (Subsistence Farming): (पृष्ठ 3) इस प्रकार की कृषि में किसान मुख्यतः अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए फसलें उगाते हैं और उपज का बाजार में विक्रय नगण्य होता है। इसमें खेत छोटे होते हैं और किसान प्रायः गरीब होते हैं। पारंपरिक उर्वरकों (गोबर खाद) के साथ-साथ सीमित मात्रा में रासायनिक उर्वरकों का भी प्रयोग हो सकता है। भारत में असम और हिमाचल प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में यह देखी जाती है।

  3. गहन कृषि (Intensive Farming): (पृष्ठ 3) जनसंख्या वृद्धि के कारण जोतें छोटी होती जा रही हैं। इन छोटे खेतों से अधिकतम उपज प्राप्त करने के लिए उन्नत बीज, उर्वरक (जैविक और रासायनिक), कीटनाशक और सिंचाई सुविधाओं का गहन प्रयोग किया जाता है। वैज्ञानिक तरीकों और मशीनीकरण का भी सहारा लिया जाता है। इसका उद्देश्य प्रति इकाई क्षेत्र से उत्पादन बढ़ाना होता है। यह पश्चिमी और मध्य भारत के मैदानी भागों में प्रचलित है।

  4. व्यापक कृषि (Extensive Farming): (पृष्ठ 3) इस कृषि में खेतों का आकार बड़ा होता है और खेती का अधिकांश कार्य (बुवाई से कटाई तक) मशीनों द्वारा किया जाता है। कीटनाशकों और रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग गहन कृषि की तुलना में कम होता है। कुल उत्पादन अधिक होता है, परंतु प्रति हेक्टेयर उपज गहन कृषि से कम हो सकती है। यह उत्तर-पश्चिमी राज्यों में की जाती है।

  5. वाणिज्यिक कृषि (Commercial Farming): (पृष्ठ 4) इस प्रकार की कृषि का मुख्य उद्देश्य उत्पादों को बाजार में बेचकर लाभ कमाना होता है। यह कम जनसंख्या वाले क्षेत्रों में आधुनिक तरीकों से की जाती है। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात में यह प्रचलित है। चाय, कॉफी, रबड़, गन्ना, मसाले सीधे बाजार के लिए उगाए जाते हैं।

  6. रोपण कृषि (Plantation Agriculture): (पृष्ठ 4) यह एक प्रकार की वाणिज्यिक कृषि है जिसमें बड़े पैमाने पर एक ही प्रकार की फसल वैज्ञानिक ढंग से उगाई जाती है, जैसे चाय, कॉफी, रबड़, नारियल, केला, गन्ना। इसका मुख्य ध्येय अधिकतम मुनाफा कमाना होता है। इसके लिए अच्छे यातायात साधन और बाजार आवश्यक हैं।

  7. मिश्रित कृषि (Mixed Farming): (पृष्ठ 4) इसमें फसलें उगाने के साथ-साथ पशुपालन (जैसे डेयरी फार्मिंग, मुर्गी पालन) भी किया जाता है। यह अधिक जनसंख्या वाले क्षेत्रों में प्रचलित है। फसलों में विविधता अपनाई जाती है। पंजाब में यह किसानों के लिए लाभकारी सिद्ध हुई है।

  8. लंबकारी या खड़ी कृषि (Vertical Farming): (पृष्ठ 4) यह विशेष परिस्थितियों में ट्रे या गमलों में मिट्टी-पानी और उत्कृष्ट बीजों का प्रयोग करके की जाने वाली कृषि है। इसमें शिक्षित मजदूरों की आवश्यकता होती है।

(ii) भारत में कृषि के मौसमों के बारे में व्याख्या करें?
उत्तर: भारत में विविध जलवायु के कारण मुख्यतः तीन कृषि मौसम पाए जाते हैं, जो फसलों के प्रकार और उनकी बुवाई-कटाई के समय को निर्धारित करते हैं। इनका विवरण पृष्ठ 6 पर दी गई तालिका में स्पष्ट है:

  1. खरीफ/सावनी (Kharif/Sawani):

    • समय: यह मौसम जून-जुलाई में दक्षिण-पश्चिमी मानसून के आगमन के साथ शुरू होता है और फसलों की कटाई सितंबर-अक्टूबर में होती है। नमी सितंबर से अक्टूबर महीनों तक रहती है। मानसून पवनों की वापसी एक सितंबर से आरम्भ हो जाती है।

    • जलवायु विशेषताएँ: इस मौसम में भरपूर नमी, दक्षिणी-पश्चिमी मानसूनी वर्षा, तथा गर्म और तर (आर्द्र) मौसमी हालात होते हैं।

    • फसलें: इस मौसम की प्रमुख फसलें धान (चावल), अरहर, मूंग, माह, गन्ना, सोयाबीन, ज्वार, बाजरा, मूंगफली, पटसन, तिल, नाइजर, और विभिन्न प्रकार के बीज हैं। इन फसलों को वृद्धि के लिए अधिक पानी और उच्च तापमान की आवश्यकता होती है।

  2. रबी (Rabi):

    • समय: रबी फसलों की बुवाई अक्टूबर-नवंबर में शीत ऋतु के आरम्भ में होती है और कटाई मध्य मार्च से अप्रैल तक होती है। यह शीत ऋतु का मौसम होता है।

    • जलवायु विशेषताएँ: इस मौसम में उत्तर-पूर्वी व्यापारिक पवनें चलती हैं, मृदा में नमी बनी रहती है (विशेषकर सिंचित क्षेत्रों में या जहाँ मानसूनोत्तर वर्षा होती है), और निरंतर पश्चिमी विक्षोभों से उत्तरी भारत में हल्की वर्षा और बर्फबारी होती है जो इन फसलों के लिए लाभदायक है। तापमान अपेक्षाकृत कम रहता है।

    • फसलें: प्रमुख रबी फसलें जौ, सरसों, गेहूँ, अलसी, मटर, सूरजमुखी, मसूर और चना हैं। इन फसलों को अंकुरण के समय ठंडी और पकते समय शुष्क व गर्म जलवायु चाहिए।

  3. ज़ायद/ज़ैद (Zaid):

    • पहला ज़ायद: यह खरीफ और रबी के बीच एक छोटा मौसम है, जो अक्टूबर से नवंबर तक होता है।

      • जलवायु विशेषताएँ: मानसून की वापसी, कम होता तापमान और बढ़ती नमी। तटीय क्षेत्रों में चक्रवाती हालात हो सकते हैं।

      • फसलें: मुख्यतः सब्जियां और चारा।

    • दूसरा ज़ायद: यह रबी और खरीफ के बीच, मध्य मार्च से मई तक होता है।

      • जलवायु विशेषताएँ: नरम धूप, गर्म और शुष्क मौसम। तटीय क्षेत्रों में चक्रवाती हालात और स्थानक पवनें जैसे कालवैशाख, आमों की वर्षा (आम्रवर्षा), चाय की वर्षा, एलिफेंटा पवनें, काफी वर्षा एवं लू चलती हैं।

      • फसलें: इस मौसम में भी मुख्यतः सब्जियां, फल (जैसे तरबूज, खरबूजा) और चारा उगाया जाता है।

इन कृषि मौसमों का चक्र भारतीय कृषि की रीढ़ है और देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

(iii) भारत में कपास उत्पादन के बारे में विस्तार से लिखें।
उत्तर: कपास भारत की एक महत्वपूर्ण वाणिज्यिक और रेशेदार फसल है, जिसका उपयोग वस्त्र उद्योग में प्रमुखता से होता है। भारत विश्व के प्रमुख कपास उत्पादक देशों में से एक है, और पृष्ठ 13 की तालिका के अनुसार, विश्व के कुल कपास उत्पादन का लगभग 25% भारत में होता है, जिससे यह सबसे बड़ा उत्पादक है।

भौगोलिक दशाएँ (पृष्ठ 8):

  • तापमान: कपास की खेती के लिए 20 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान आदर्श माना जाता है। इसके लिए कम से कम 210 पाला रहित दिन आवश्यक हैं, क्योंकि पाला फसल के लिए हानिकारक होता है।

  • वर्षा: इसके लिए मध्यम वर्षा (लगभग 50-100 सेंटीमीटर) उपयुक्त होती है, लेकिन फूल खिलते और टिंडे (bolls) पकते समय खिली धूप और शुष्क मौसम चाहिए। अत्यधिक वर्षा हानिकारक हो सकती है। सिंचाई की सुविधा वाले क्षेत्रों में भी इसकी खेती सफलतापूर्वक की जाती है।

  • मृदा: कपास के लिए काली मिट्टी (रेगुर मृदा) सर्वोत्तम मानी जाती है, जो दक्कन के पठारी क्षेत्रों में प्रमुखता से पाई जाती है (पृष्ठ 12)। यह मिट्टी नमी को देर तक धारण करने की क्षमता रखती है। जलोढ़ और लैटेराइट मिट्टी में भी इसकी खेती होती है।

कपास के प्रकार और उत्पादक क्षेत्र (पृष्ठ 8 और 12):
भारत में विभिन्न रेशे की लंबाई वाली कपास उगाई जाती है, जैसे लम्बे रेशे वाली, मध्यम रेशे वाली और छोटे रेशे वाली कपास।
प्रमुख कपास उत्पादक राज्य पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश हैं। काली मृदा वाले क्षेत्र जैसे महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक और तेलंगाना का दक्षिणी पठार कपास उत्पादन के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं। गुजरात और महाराष्ट्र में उत्पन्न कपास का उपयोग मुंबई, अहमदाबाद और सूरत के कपड़ा मिलों में किया जाता है।

कपास उत्पादन का महत्व:
कपास न केवल लाखों किसानों को आजीविका प्रदान करता है बल्कि वस्त्र उद्योग के माध्यम से बड़े पैमाने पर रोजगार भी सृजित करता है। यह भारत के निर्यात में भी महत्वपूर्ण योगदान देता है। सरकार द्वारा कपास की खेती को बढ़ावा देने के लिए उन्नत बीज, तकनीकी सहायता और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) जैसी योजनाएँ भी चलाई जाती हैं। हालांकि, कपास की खेती में कीटनाशकों का अत्यधिक प्रयोग और जल संसाधनों पर दबाव जैसी कुछ चुनौतियाँ भी हैं, जिनके समाधान के लिए सतत कृषि पद्धतियों को अपनाना आवश्यक है।

(iv) निम्नलिखित के बारे में जानकारी दीजिए:
(क) देश का काफ़ी राज्य (पृष्ठ 11)
उत्तर: कर्नाटक को “भारत का काफ़ी घर” या देश का प्रमुख कॉफी उत्पादक राज्य कहा जाता है। भारत विश्व की लगभग 3.5% कॉफी का उत्पादन करता है, जिसमें से अधिकांश (लगभग दो-तिहाई) अकेले कर्नाटक में होती है। यहाँ मुख्यतः रोबस्टा (73%) और अरेबिका (27%) किस्म की कॉफी उगाई जाती है।
कर्नाटक के पश्चिमी घाट के पहाड़ी क्षेत्र, विशेषकर चिकमंगलूर, कोडागू (कुर्ग) और हसन जिले कॉफी उत्पादन के लिए प्रसिद्ध हैं। कोडागू जिला अकेले कर्नाटक के लगभग 50% कॉफी उत्पादन के लिए जाना जाता है। मैसूर और शिमोगा जिले भी महत्वपूर्ण उत्पादक हैं।
कॉफी की खेती के लिए आदर्श भौगोलिक दशाएँ कर्नाटक में मौजूद हैं:

  • तापमान और ऊँचाई: 15 से 28 डिग्री सेल्सियस तापमान और समुद्र तल से 600 से 1600 मीटर की ऊँचाई।

  • वर्षा: 150 से 250 सेंटीमीटर वार्षिक वर्षा, जो यहाँ पश्चिमी घाट के कारण प्राप्त होती है।

  • छाया: कॉफी के पौधों को सीधी धूप से बचाने के लिए बड़े पेड़ों की छाया में उगाया जाता है।

  • मृदा: ह्यूमस युक्त, अच्छी जल निकासी वाली दोमट मिट्टी।
    मार्च से मई के बीच होने वाली “चेरी ब्लॉसम वर्षा” कॉफी की फलियों के पकने में सहायक होती है। यहाँ उत्पादित लगभग 80% कॉफी पश्चिमी देशों को निर्यात कर दी जाती है, जो इसकी उच्च गुणवत्ता को दर्शाता है।

(ख) भारत का चाय बागान (पृष्ठ 12)
उत्तर: असम को “भारत का चाय बागान” कहा जाता है, क्योंकि यह भारत का सबसे बड़ा चाय उत्पादक राज्य है। भारत के कुल चाय उत्पादन का लगभग 52% हिस्सा अकेले असम में पैदा होता है। अंग्रेजों ने यहाँ बड़े पैमाने पर जंगलों को साफ करके चाय के बागान स्थापित किए थे।
असम की उष्ण और आर्द्र जलवायु चाय की झाड़ी के लिए अत्यंत उपयुक्त है, जो एक उष्ण और उप-उष्ण कटिबंधीय पौधा है। यहाँ की भौगोलिक दशाएँ चाय उत्पादन के अनुकूल हैं:

  • तापमान: 20° से 30° सेल्सियस।

  • वर्षा: 150 से 300 सेंटीमीटर वार्षिक वर्षा, जो समान रूप से वितरित हो।

  • आर्द्रता और ओस: उच्च आर्द्रता, सुबह की ओस और धुंध चाय के पौधों की कोमल पत्तियों के विकास के लिए बहुत अच्छी होती हैं।

  • मृदा: अच्छी जल निकासी वाली, गहरी, ह्यूमस और लौह अंश युक्त अम्लीय मृदा। पहाड़ी ढलान चाय की खेती के लिए आदर्श होते हैं ताकि पानी जड़ों में जमा न हो।
    असम में ब्रह्मपुत्र और सूरमा घाटियाँ प्रमुख चाय उत्पादक क्षेत्र हैं। यहाँ कुशल मजदूर चाय की पत्तियाँ तोड़ने और बागानों की देखभाल का कार्य करते हैं। असम की चाय अपनी कड़क लिकर और विशिष्ट स्वाद के लिए विश्व प्रसिद्ध है। पृष्ठ 7 पर यह भी उल्लेख है कि दार्जिलिंग (पश्चिम बंगाल) की चाय भी एक विश्व ब्रांड है, लेकिन असम उत्पादन में अग्रणी है।

(ग) अनाज सुरक्षा (पृष्ठ 14)
उत्तर: अनाज सुरक्षा (Food Security) का तात्पर्य सभी लोगों के लिए हर समय पर्याप्त, सुरक्षित और पौष्टिक भोजन की भौतिक और आर्थिक पहुँच सुनिश्चित करना है ताकि वे एक सक्रिय और स्वस्थ जीवन जी सकें। विश्व अनाज सुरक्षा सूचक अंक, जिसे 2012 में अर्थशास्त्रियों द्वारा शुरू किया गया, विभिन्न देशों में खाद्य उपलब्धता और पहुँच की स्थिति का आकलन करता है।
अनाज सुरक्षा के कई पहलू हैं:

  1. उपलब्धता: देश में अनाज का पर्याप्त उत्पादन, सरकारी भंडार और आयात की क्षमता।

  2. पहुँच: प्रत्येक व्यक्ति की अनाज खरीदने की आर्थिक क्षमता और भोजन तक भौतिक पहुँच।

  3. उपयोगिता: भोजन का सुरक्षित और पौष्टिक होना, साथ ही शरीर द्वारा पोषक तत्वों का सही अवशोषण।
    विश्व स्तर पर जनसंख्या वृद्धि और अनाज उत्पादन में कमी के कारण अनाज जुटाने की कोशिशें चुनौतीपूर्ण होती जा रही हैं। भारत में, अनाज सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर किसानों से अनाज खरीदती है, सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के माध्यम से रियायती दरों पर गरीबों को अनाज उपलब्ध कराती है, और बफर स्टॉक बनाए रखती है।
    वैश्विक भूख सूचकांक (Global Hunger Index) भी अनाज सुरक्षा से संबंधित एक महत्वपूर्ण मापक है, जो अल्पपोषण, बच्चों में कुपोषण और बाल मृत्यु दर के आधार पर देशों की रैंकिंग करता है। 2023 में 125 देशों में भारत का 111वां स्थान (पृष्ठ 14 के अनुसार) गंभीर खाद्य सुरक्षा चुनौतियों को दर्शाता है। प्राकृतिक संसाधनों पर बढ़ते दबाव का अध्ययन भी अनाज सुरक्षा सूचकांक के विश्लेषण में महत्वपूर्ण है।

(घ) पारंपरिक गन्ना उत्पादन पेटी (पृष्ठ 11)
उत्तर: भारत में पारंपरिक गन्ना उत्पादन पेटी (Tarai Region: Traditional Sugarcane belt) मुख्य रूप से तराई क्षेत्र में स्थित है। तराई क्षेत्र हिमालय के आधार में एक दलदली भूमि वाला क्षेत्र है जो पश्चिम से पूर्व तक हिमालय के समानांतर फैला हुआ है। यह पेटी उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार और असम राज्यों में यमुना नदी से लेकर ब्रह्मपुत्र नदी तक विस्तृत है।
इस क्षेत्र की गर्म और तर (आर्द्र) जलवायु दशाएँ गन्ने की कृषि के लिए अत्यंत अनुकूल हैं:

  • तापमान: गन्ने की वृद्धि के लिए लगभग 20 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त होता है।

  • वर्षा: लगभग 100 से 150 सेंटीमीटर वार्षिक वर्षा इसके लिए अच्छी मानी जाती है। तराई क्षेत्र में यह वर्षा पर्याप्त मात्रा में होती है।

  • मृदा: यहाँ पाई जाने वाली उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी गन्ने की खेती के लिए उत्तम है।
    इस पेटी के प्रमुख गन्ना उत्पादक जिले हरिद्वार, उधम सिंह नगर, पीलीभीत, लखीमपुर खीरी, पश्चिमी और पूर्वी चंपारन, सीतामढ़ी, मधुबनी, सिलीगुड़ी और जलपाईगुड़ी हैं। उत्तर प्रदेश भारत का सबसे बड़ा गन्ना उत्पादक राज्य है और देश के लगभग 39% गन्ने तथा 33% चीनी का उत्पादन यहीं होता है।
    हालांकि, सर्दी के मौसम में कोहरा और गर्मियों में अत्यधिक गर्मी से प्रति हेक्टेयर उपज में कमी आ सकती है (राष्ट्रीय औसत लगभग 70 टन प्रति हेक्टेयर है)। इस क्षेत्र में गन्ने पर आधारित सैकड़ों चीनी मिलें स्थापित हैं, जो स्थानीय अर्थव्यवस्था और रोजगार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। यह क्षेत्र पारंपरिक रूप से गन्ने की खेती के लिए जाना जाता रहा है, जो इसकी भौगोलिक और जलवायुविक उपयुक्तता को दर्शाता है।

(v) भारतीय कृषि के विकास में विश्वविद्यालयों की क्या भूमिका है?
उत्तर: भारतीय कृषि के विकास में कृषि विश्वविद्यालयों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण और बहुआयामी रही है। इन विश्वविद्यालयों ने अनुसंधान, शिक्षा और विस्तार सेवाओं के माध्यम से कृषि क्षेत्र में क्रांति लाने का कार्य किया है।
1. अनुसंधान और नवाचार: कृषि विश्वविद्यालयों ने उच्च उपज देने वाली बीज किस्मों (HYVs), रोग प्रतिरोधी प्रजातियों, और उन्नत कृषि तकनीकों का विकास किया है। उदाहरण के लिए, पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (PAU), लुधियाना (पृष्ठ 13) ने पंजाब में हरित क्रांति की सफलता में केंद्रीय भूमिका निभाई, विशेषकर गेहूँ और धान की उन्नत किस्मों को विकसित करके। इन्होंने मृदा स्वास्थ्य, जल प्रबंधन, कीट नियंत्रण और फसल कटाई उपरांत प्रबंधन (Post-Harvest Management) पर महत्वपूर्ण शोध किए हैं। सेंट्रल इंस्टिट्यूट ऑफ पोस्ट-हार्वेस्ट इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी (CIPHET) की स्थापना PAU कैंपस में इसी दिशा में एक कदम था।

2. शिक्षा और मानव संसाधन विकास: ये विश्वविद्यालय कृषि विज्ञान, पशु चिकित्सा, गृह विज्ञान, और संबंधित क्षेत्रों में स्नातक, परास्नातक और डॉक्टरेट स्तर की शिक्षा प्रदान करते हैं। इससे प्रशिक्षित कृषि वैज्ञानिक, विशेषज्ञ और प्रसार कार्यकर्ता तैयार होते हैं जो नवीनतम ज्ञान को किसानों तक पहुंचाते हैं। PAU, लुधियाना को 1995 में देश के सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय का खिताब मिला, जो इसकी शैक्षिक उत्कृष्टता को दर्शाता है।

3. विस्तार सेवाएँ: कृषि विश्वविद्यालय ‘लैब टू लैंड’ (प्रयोगशाला से खेत तक) कार्यक्रम के तहत अनुसंधान के निष्कर्षों को किसानों तक पहुंचाते हैं। वे किसान मेलों, प्रदर्शनों, प्रशिक्षण कार्यक्रमों और कृषि पत्रिकाओं के माध्यम से किसानों को नई तकनीकों और पद्धतियों से अवगत कराते हैं। इससे किसान आधुनिक कृषि को अपनाने के लिए प्रेरित होते हैं।

4. नीति निर्माण में योगदान: ये संस्थान कृषि से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर सरकार को विशेषज्ञ सलाह और नीतिगत सुझाव भी प्रदान करते हैं, जिससे कृषि क्षेत्र के लिए प्रभावी योजनाएँ बनाने में मदद मिलती है।

5. विविधीकरण और संबद्ध क्षेत्र: विश्वविद्यालयों ने न केवल मुख्य फसलों बल्कि बागवानी, पशुपालन (जैसे दुधारू पशु और मुर्गीपालन), मत्स्य पालन और कृषि वानिकी जैसे संबद्ध क्षेत्रों के विकास में भी योगदान दिया है।
भारत में पहला कृषि विश्वविद्यालय 1960 में पंत नगर (उत्तर प्रदेश) में स्थापित हुआ था। इसके बाद देश भर में कई कृषि विश्वविद्यालय स्थापित हुए, जिन्होंने मिलकर भारतीय कृषि को पारंपरिक खेती से आधुनिक और वैज्ञानिक खेती की ओर अग्रसर किया, जिससे खाद्य उत्पादन में वृद्धि हुई और देश खाद्य सुरक्षा की दिशा में आत्मनिर्भर बना।

Author

  • vivkaushal23@hotmail.com

    Vivek Kaushal is a passionate educator with over 14 years of teaching experience. He holds an MCA and B.Ed. and is certified as a Google Educator Level 1 and Level 2. Currently serving as the Principal at Vivek Public Sr. Sec. School, Vivek is dedicated to fostering a dynamic and innovative learning environment for students. Apart from his commitment to education, he enjoys playing chess, painting, and cricket, bringing a creative and strategic approach to both his professional and personal life.

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