संसाधन एवं विकास
संसाधनों का वर्गीकरण
- उत्पत्ति के आधार पर:
- जैविक संसाधन: जिनकी प्राप्ति हमें जैव मंडल से होती है, जैसे मनुष्य, जीव-जंतु, पेड़ी, मछलियां, जंगल आदि।
- अजैविक संसाधन: जिनमें जान नहीं होती, जैसे चट्टानें, धातु इत्यादि।
- उपलब्धता के आधार पर:
- नवीनीकरण योग्य संसाधन: जो स्वयं का पुन: निर्माण कर सकते हैं, जैसे सौर ऊर्जा, जल, वायु, जंगल और जीव-जंतु।
- गैर नवीनीकरणीय योग्य संसाधन: जिनकी बनने में बहुत अधिक समय लगता है, जैसे खनिज तेल, खनिज इत्यादि।
- स्वामित्व के आधार पर:
- व्यक्तिगत संसाधन: जो व्यक्ति की निजी मलकियत होते हैं, जैसे मकान, कृषि भूमि।
- सामाजिक संसाधन: जो तकनीकी रूप से सभी संसाधन सरकार के अधीन होते हैं, जैसे सड़कें, रेल-पथ।
- विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (EEZ): आधाररेखा से 200 नॉटिकल मील तक का क्षेत्र।
- अंतर्राष्ट्रीय संसाधन: जैसे समुद्र में 200 नॉटिकल मील का विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र।
- विकास के स्तर के आधार पर:
- सम्भावित संसाधन: जो किसी क्षेत्र में होते हैं, परंतु प्रयोग नहीं लाए गए होते हैं।
- विकसित संसाधन: जिनका सर्वेक्षण हो चुका होता है।
संसाधनों का आयोजन (Resource Planning)
योजनाबद्ध/नियोजन/आयोजन के प्रकार:
- प्रक्रिया से संबंधित योजना
- नीतिगत योजनाबद्धी
- रणनीतिक योजनाबद्धी
संसाधनों का संरक्षण (Conservation of Resources)
- संसाधन हर तरह के विकास के लिए जरूरी हैं।
- प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करना आवश्यक है ताकि प्रत्येक प्राणी को इसका लाभ हो सके।
- अंधाधुंध बरबादी से संसाधन समाप्त हो जाएंगे।
भूमि का सदुपयोग (Land Utilisation)
- भारत में सबसे अधिक कृषि योग्य भूमि है जो विश्व की कुल कृषि योग्य भूमि का लगभग 9.6% है।
- भारत के कुल घरेलू उत्पादन (GDP) का 15.96% कृषि विभाग से आता है।
- भारत में कृषि और जंगलों का रकवा जोड़ दिया जाए तो यह कुल 24.39 प्रतिशत बनता है।
मृदा, संसाधन (Soil as Resource)
- मृदा सबसे महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है।
- भारत में मुख्य मृदा प्रकार: जलोढ़ मृदा, काली मृदा, लाल एवं पीली मृदा, लेटेराइट मृदा, और खुश्क मृदा।
- मृदा अपरदन से मृदा की गुणवत्ता कम होती जा रही है।
मृदा और भूमि का संरक्षण (Conservation of Soil and Soil Erosion)
मृदा की संभाल/संरक्षण के उपाय:
- नालियों या बारियों को कंकांड से भर देना।
- चेक बांध बना कर वृद्धि से रोकना।
- सीढ़ीनुमा खेत बनाना।
- रेतीले टिब्बे बहने से रोकना।
- वृक्षों की कतारें बनाना (Shelter Belt)।
आपदा प्रबंधन (Disaster Management)
- प्राकृतिक और मानवी आपदाओं का शिकार होता है भारत।
- आपदा के 8 प्रकार: जल से संबंधित, भू-गर्भीय, औद्योगिक, रासायनिक और परमाणु, जीव विज्ञान, दुर्घटनाओं, समुद्री, और फसल से संबंधित।
- भारत इतिहास, देश को आत्मनिर्भर बनाने का है।
संदाई फ्रेमवर्क (Sendai Framework)
- 2015 से 2030 तक आपदाओं के प्रभाव को कम करने के लिए योजना।
- इसमें 4 आवश्यक कार्य, 7 लक्ष्य और 13 सिद्धांत शामिल हैं।
जलवायु परिवर्तन/बदलाव (Climate Change)
- पृथ्वी पर जमी बर्फ पिघल जाएगी और समुद्र में जल स्तर बढ़ जाएगा।
- मानवीय गतिविधियों के कारण 1850 से 2006 तक वायुमंडल में 488 अरब टन कार्बन डाली गई।
जलवायु शरणार्थी (Climate Refugees)
- वे लोग हैं जो विश्वव्यापी तापक्रम वृद्धि और जलवायु परिवर्तन के कारण अपना घर-बार छोड़ने को विवश हो जाते हैं।
- वैज्ञानिकों के अनुसार 2050 तक 5-20 करोड़ तक जलवायु शरणार्थी हो जाएंगे।
- बांग्लादेश की 17 प्रतिशत जमीन 2050 तक पानी में डूब जाएगी जिससे 2 करोड़ लोग शरणार्थी बन जाएंगे।
प्रश्न 3: निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 30 शब्दों में लिखिए:-
(i) उन तीन राज्यों के नाम बताएँ, जिनमें काली मृदा मिलती है। यहाँ पर किस फसल की कृषि की जाती है बताएँ?
- उत्तर: महाराष्ट्र, गुजरात और मध्य प्रदेश में काली मृदा मिलती है। इस मिट्टी में मुख्य रूप से कपास, गेहूँ, सोयाबीन और दालों की खेती की जाती है।
(ii) भारत के पूर्वी तट और नदियों के डेल्टावी भागों में किस किस्म की मृदा मिलती है?
- उत्तर: भारत के पूर्वी तट और नदियों के डेल्टावी भागों में जलोढ़ मिट्टी मिलती है, जो बहुत उपजाऊ होती है और धान की खेती के लिए बहुत उपयुक्त है।
(iii) पहाड़ी क्षेत्रों में मृदा-अपरदन (Soil Erosion) को रोकने के लिए कौन-कौन से कदम उठाए जा रहे हैं?
- उत्तर: पहाड़ी क्षेत्रों में मृदा अपरदन रोकने के लिए सीढ़ीनुमा खेत बनाना, चेक बांध निर्माण, वनरोपण, वृक्षों की कतारें (शेल्टर बेल्ट) लगाना और समोच्च जुताई जैसे कदम उठाए जाते हैं।
(iv) जैविक और अजैविक संसाधन क्या होते हैं? उदाहरण दीजिए।
- उत्तर: जैविक संसाधन वे हैं जिनकी प्राप्ति जैव मंडल से होती है, जैसे मनुष्य, वनस्पति, जीव-जंतु। अजैविक संसाधन वे हैं जिनमें जान नहीं होती, जैसे चट्टानें, धातु, खनिज तेल।
(v) आपदाओं के प्रबंधन से क्या अभिप्राय है?
- उत्तर: आपदा प्रबंधन का अभिप्राय है किसी भी आपदा के समय उसका सामना कैसे किया जा सकता है। इसमें आपदा से पूर्व तैयारी, आपदा के दौरान प्रतिक्रिया और आपदा के बाद पुनर्वास शामिल हैं।
(vi) मृदा अपरदन (Soil Erosion) क्या होता है? उदाहरण भी दीजिए।
- उत्तर: मृदा अपरदन वह प्रक्रिया है जिसमें पवन, जल, ग्लेशियर या मानवीय गतिविधियों द्वारा मिट्टी का कटाव होता है। उदाहरण – पानी द्वारा नालियों और गद्ढों का निर्माण, हवा द्वारा रेत का उड़ना।
(vii) चालू परती भूमि तथा किसी और परती भूमि में अंतर स्पष्ट करें?
- उत्तर: चालू परती भूमि वह है जिसे अल्पकालिक अवधि (1-2 वर्ष) के लिए बिना बोए छोड़ दिया जाता है। अन्य परती भूमि वह है जिसे लंबी अवधि (2 वर्ष से अधिक) के लिए बिना उपयोग छोड़ दिया जाता है।
(viii) निम्नलिखित पर नोट लिखिए: (क) जोनल और अजोनल मिट्टियाँ
- उत्तर: जोनल मिट्टियाँ वे हैं जो जलवायु और वनस्पति के प्रभाव से बनती हैं, जैसे लाल, पीली मिट्टी। अजोनल मिट्टियाँ वे हैं जो हाल ही में बनी हैं और अभी विकसित हो रही हैं, जैसे जलोढ़ मिट्टी।
(ख) मृदा की संरचना
- उत्तर: मृदा की संरचना में विभिन्न परतें होती हैं – ऊपरी मिट्टी (A-क्षितिज), अवक्षालन परत (B-क्षितिज), और जनक सामग्री (C-क्षितिज)। इसमें खनिज, जैविक पदार्थ, वायु और जल होते हैं।
(ग) साधन
- उत्तर: साधन वे प्राकृतिक संसाधन हैं जो मानव की जरूरतों को पूरा करते हैं और उनके जीवन को आरामदायक बनाते हैं, जैसे भूमि, जल, वायु, वन्य जीवन आदि।
(घ) मृदा का आर्थिक महत्व
- उत्तर: मृदा का आर्थिक महत्व अत्यधिक है क्योंकि यह कृषि का आधार है, जिससे भोजन, फाइबर और कच्चा माल प्राप्त होता है। यह भवन निर्माण, बागवानी और वानिकी में भी महत्वपूर्ण है।
(ङ) अपरदन से मृदा की सुरक्षा (संरक्षण)
- उत्तर: मृदा संरक्षण के उपाय हैं – वृक्षारोपण, समोच्च खेती, सीढ़ीदार खेत, चेक बांध, अवरोधक पट्टियां, घास-फूस से ढकना और रिटेनिंग वॉल का निर्माण करना।
प्रश्न 4: निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 120 शब्दों में दीजिए:-
(i) भारत में भूमि के प्रयोग का विवेचन कीजिए? यह भी बताएँ कि भारत में 1960-61 के बाद जंगलों के अधीन रकबे में वृद्धि नहीं हो सकी क्यों?
- उत्तर: भारत में भूमि के प्रयोग का विवेचन:
भारत में कुल भौगोलिक क्षेत्र का 9.6% विश्व की कृषि योग्य भूमि है, जो लगभग 179.8 मिलियन हेक्टेयर है। भारत का कुल घरेलू उत्पादन (GDP) का 15.96% कृषि विभाग से आता है। भारत की 58 प्रतिशत आबादी किसी न किसी रूप से कृषि से जुड़ी हुई है।
भारत में भूमि उपयोग को प्रभावित करने वाले कारकों में जलवायु, कृषि भूमि का आकार, कीमतें, सरकारी नीतियां और किसानों की आमदनी शामिल हैं।
1960-61 के बाद जंगलों के अधीन रकबे में वृद्धि न होने के कारण:
-
- बढ़ती जनसंख्या के कारण कृषि भूमि, आवास और औद्योगिक क्षेत्रों के लिए वनों की कटाई
- शहरीकरण और बुनियादी ढांचे के विकास के लिए वनभूमि का उपयोग
- अवैध वन कटाई और वन उत्पादों के अत्यधिक दोहन
- वन संरक्षण कानूनों का अपर्याप्त कार्यान्वयन
- वन प्रबंधन के लिए अपर्याप्त धन और संसाधन
हालांकि, हाल के वर्षों में वनीकरण और सामाजिक वानिकी कार्यक्रमों के कारण जंगलों के क्षेत्र में कुछ सुधार हुआ है।
(ii) तकनीक और आर्थिक विकास से संसाधनों का उपयोग कैसे बढ़ जाता है?
- उत्तर: तकनीक और आर्थिक विकास से संसाधनों का उपयोग निम्न प्रकार से बढ़ता है:
- तकनीकी विकास से संसाधनों के दोहन और प्रसंस्करण की क्षमता बढ़ती है, जिससे उनका और अधिक उपयोग होता है।
- नई तकनीकें ऐसे संसाधनों को उपयोगी बना देती हैं जो पहले अनुपयोगी थे, जैसे नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकी से सौर और पवन ऊर्जा का उपयोग।
- आर्थिक विकास से लोगों की क्रय शक्ति बढ़ती है, जिससे उत्पादों और सेवाओं की मांग बढ़ती है और इसके लिए अधिक संसाधनों की आवश्यकता होती है।
- औद्योगिकरण से संसाधनों की खपत बढ़ जाती है क्योंकि अधिक कच्चे माल, ऊर्जा और पानी की आवश्यकता होती है।
- बेहतर परिवहन और संचार प्रणालियां दूरस्थ क्षेत्रों में संसाधनों तक पहुंच प्रदान करती हैं, जिससे उनका दोहन संभव होता है।
- विश्व व्यापार और वैश्वीकरण के कारण संसाधनों की वैश्विक मांग बढ़ जाती है।
हालांकि, इस बढ़े हुए उपयोग के साथ संसाधनों के संरक्षण और टिकाऊ उपयोग की भी आवश्यकता है।
(iii) विश्वव्यापी तापक्रम वृद्धि (Global Warming) किसे कहते हैं? व्याख्या करें।
- उत्तर: विश्वव्यापी तापक्रम वृद्धि (ग्लोबल वार्मिंग) पृथ्वी के वातावरण और महासागरों के औसत तापमान में दीर्घकालिक वृद्धि को कहते हैं। यह मुख्य रूप से मानवीय गतिविधियों द्वारा उत्सर्जित ग्रीनहाउस गैसों के कारण होती है, विशेष रूप से जीवाश्म ईंधन के जलने से।
प्रमुख कारण:
-
- कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂), मीथेन (CH₄), नाइट्रस ऑक्साइड (N₂O) जैसी ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन
- वनों की कटाई से कार्बन सिंक का नुकसान
- औद्योगिक प्रक्रियाएं और परिवहन से उत्सर्जन
- कृषि और पशुपालन से मीथेन उत्सर्जन
प्रभाव:
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- समुद्र के जल स्तर में वृद्धि
- मौसम की चरम घटनाओं में वृद्धि (तूफान, बाढ़, सूखा)
- हिमनदों और ध्रुवीय बर्फ का पिघलना
- जैव विविधता का नुकसान
- कृषि पैटर्न में परिवर्तन
वैज्ञानिकों का मानना है कि 1990 से 2100 तक विश्व का तापमान 1.5 से 4.5°C तक बढ़ सकता है, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र और मानव जीवन पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा।
(iv) जलवायु परिवर्तन में शरणार्थियों पर क्या प्रभाव होता है?
- उत्तर: जलवायु परिवर्तन से शरणार्थियों पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ते हैं:
- विस्थापन: समुद्र स्तर में वृद्धि, बाढ़, सूखा और मौसम की चरम घटनाओं के कारण लोग अपने घर-बार छोड़ने को विवश होते हैं और जलवायु शरणार्थी बन जाते हैं।
- आजीविका का नुकसान: जलवायु परिवर्तन से कृषि, मत्स्य पालन और अन्य प्राकृतिक संसाधन-आधारित आजीविकाएँ प्रभावित होती हैं, जिससे शरणार्थी आर्थिक रूप से कमजोर हो जाते हैं।
- संसाधनों के लिए प्रतिस्पर्धा: जलवायु शरणार्थियों के आगमन से मेजबान समुदायों में पानी, भोजन और आवास जैसे सीमित संसाधनों पर दबाव बढ़ता है, जिससे संघर्ष हो सकता है।
- स्वास्थ्य जोखिम: शरणार्थी शिविरों में अक्सर स्वच्छता और स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव होता है, जिससे संक्रामक रोगों का खतरा बढ़ जाता है।
- कानूनी मान्यता की कमी: कई देशों में “जलवायु शरणार्थी” की कोई कानूनी स्थिति नहीं है, जिससे उन्हें संरक्षण और सहायता मिलना मुश्किल हो जाता है।
वैज्ञानिकों का अनुमान है कि 2050 तक 5-20 करोड़ लोग जलवायु परिवर्तन के कारण विस्थापित हो सकते हैं, जिससे एक बड़ा मानवीय संकट उत्पन्न हो सकता है।
(v) आपदा प्रबंधन ‘सेंडाई फ्रेमवर्क’ के बारे में संक्षेप में लिखें।
- उत्तर: सेंडाई फ्रेमवर्क फॉर डिजास्टर रिस्क रिडक्शन (2015-2030) एक अंतरराष्ट्रीय दस्तावेज है जो आपदाओं के प्रभाव को कम करने के लिए वैश्विक योजना प्रदान करता है। यह जापान के सेंडाई शहर में 14-18 मार्च 2015 को तीसरे संयुक्त राष्ट्र विश्व सम्मेलन में अपनाया गया था।
प्रमुख विशेषताएं:
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- चार प्राथमिकताएं:
- आपदा जोखिम की समझ
- आपदा जोखिम प्रबंधन के लिए शासन को मजबूत करना
- आपदा जोखिम न्यूनीकरण में निवेश
- आपदा तैयारी, पुनर्वास और पुनर्निर्माण में “बेहतर निर्माण”
- सात वैश्विक लक्ष्य, जिनमें शामिल हैं:
- आपदा मृत्यु दर में कमी
- प्रभावित लोगों की संख्या में कमी
- आर्थिक नुकसान में कमी
- महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे को नुकसान में कमी
- आपदा जोखिम न्यूनीकरण रणनीतियों के साथ देशों की संख्या में वृद्धि
- चार प्राथमिकताएं:
भारत ने इस फ्रेमवर्क को अपनाया है और अपनी आपदा प्रबंधन नीतियों में इसके सिद्धांतों को शामिल किया है।
(vi) साधनों की परिभाषा दीजिए? और इनका वर्गीकरण करें? कोई भी दो किस्म के साधनों की व्याख्या करें।
- उत्तर: साधन या संसाधन परिभाषा: साधन वे प्राकृतिक और मानव निर्मित वस्तुएँ हैं जो मानव की आवश्यकताओं को पूरा करती हैं और उनके जीवन को बेहतर बनाती हैं। इनका मूल्य मानव द्वारा उनके उपयोग और ज्ञान पर निर्भर करता है।
संसाधनों का वर्गीकरण:
-
- उत्पत्ति के आधार पर:
- जैविक संसाधन: जिनकी प्राप्ति जैव मंडल से होती है, जैसे वनस्पति, जीव-जंतु
- अजैविक संसाधन: जिनमें जान नहीं होती, जैसे खनिज, पानी, हवा
- उपलब्धता के आधार पर:
- नवीनीकरणीय संसाधन: जो स्वयं का पुनर्निर्माण कर सकते हैं, जैसे सौर ऊर्जा, वायु
- गैर-नवीनीकरणीय संसाधन: जो एक बार प्रयोग के बाद समाप्त हो जाते हैं, जैसे खनिज तेल
- उत्पत्ति के आधार पर:
नवीनीकरणीय संसाधन: ये संसाधन प्राकृतिक रूप से मानव को लगातार मिलते रहते हैं और मानव गतिविधियों से प्रभावित नहीं होते। उदाहरण के लिए, सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, जल और जीव-जंतु आदि। भारत नवीनीकरणीय ऊर्जा (क्षेत्र) में तेजी से बढ़ रहा है और विश्व में चौथा सबसे बड़ा पवन ऊर्जा उत्पादक है।
स्वामित्व के आधार पर संसाधन: इसमें व्यक्तिगत संसाधन (जैसे निजी कृषि भूमि, मकान), सामाजिक संसाधन (जैसे सड़कें, पार्क), राष्ट्रीय संसाधन (जैसे वन, खनिज) और अंतर्राष्ट्रीय संसाधन (जैसे महासागर) शामिल हैं। उदाहरण के लिए, भारत में समुद्र तट से 200 नॉटिकल मील तक का क्षेत्र विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (EEZ) के रूप में भारत का है।
(vii) साधनों की योजनाकारी से क्या अभिप्राय है? किस्मों पर विस्तृत नोट लिखें।
- उत्तर: साधनों की योजनाकारी या संसाधन नियोजन का अभिप्राय:
संसाधन योजनाकारी या आयोजन का अर्थ है किसी भी समस्या के बारे में पहले से ही योजना बना लेना अथवा सोच लेना। यह बताती है कि हम कहाँ पर खड़े हैं और हमें कहाँ पर जाना है। यह संसाधनों की देखभाल और उचित उपयोग सुनिश्चित करती है।
योजनाकारी/नियोजन/आयोजन के प्रकार:
-
- प्रक्रिया से संबंधित योजना:
- यह किसी विशिष्ट क्षेत्र के लिए विकास के चरणों की पहचान करती है
- उदाहरण: ग्रामीण विकास के लिए पंचायती राज प्रणाली, शहरी विकास के लिए स्मार्ट सिटी मिशन
- इसमें विभिन्न हितधारकों की भागीदारी शामिल होती है
- नीतिगत योजनाबद्धी:
- यह राष्ट्रीय, राज्य या क्षेत्रीय स्तर पर लक्ष्यों और उद्देश्यों को निर्धारित करती है
- उदाहरण: भारत की पंचवर्षीय योजनाएँ, राष्ट्रीय विकास परिषद
- यह आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए व्यापक दिशानिर्देश प्रदान करती है
- रणनीतिक योजनाबद्धी:
- यह विशिष्ट क्षेत्रों या मुद्दों के लिए विस्तृत कार्य योजना प्रदान करती है
- उदाहरण: जल संरक्षण के लिए राष्ट्रीय जल मिशन, अक्षय ऊर्जा विकास के लिए सौर मिशन
- यह तकनीकी विशेषज्ञों और संबंधित एजेंसियों के इनपुट पर आधारित होती है
- प्रक्रिया से संबंधित योजना:
भारत जैसे विशाल देश में जहां संसाधनों की उपलब्धता में बहुत अधिक भिन्नता है, राष्ट्रीय, राज्य और स्थानीय स्तर पर संसाधनों के उपयोग करने के लिए योजनाबद्धी आवश्यक है। उदाहरण के लिए, झारखंड, छत्तीसगढ़ तथा मध्य प्रदेश राज्यों में खनिज और कोयला बहुत अधिक मात्रा में है जबकि राजस्थान में सौर और पवन ऊर्जा की काफी संभावना है।
(viii) भूमि के उपयोग से क्या अभिप्राय है? धरती को भिन्न-भिन्न मदों के लिए प्रयोग का विवरण करें और व्याख्या भी करें।
- उत्तर: भूमि के उपयोग का अभिप्राय:
भूमि उपयोग से तात्पर्य है कि कोई भी भूमि किसी भी कार्य के लिए कैसे प्रयोग की जा रही है, इस तथ्य को रिकॉर्ड करना। यह भूमि के विभिन्न प्रकारों के उपयोग और उनके वितरण पैटर्न का अध्ययन है।
भारत में भूमि उपयोग के विभिन्न मद:
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- कृषि भूमि:
- भारत में विश्व की कुल कृषि योग्य भूमि का लगभग 9.6% भूमि है (179.8 मिलियन हेक्टेयर)
- यह भारत के कुल घरेलू उत्पादन (GDP) का 15.96% योगदान देती है
- भारत की 58% आबादी किसी न किसी रूप से कृषि से जुड़ी है
- वन भूमि:
- भारत में कुल भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 24.48% (8,07,276 वर्ग कि.मी) वनों के अधीन है
- मध्य प्रदेश (77,482 वर्ग किलोमीटर) में सबसे अधिक क्षेत्र जंगलों के अधीन है
- वन पारिस्थितिकी तंत्र, जैव विविधता संरक्षण और जलवायु नियंत्रण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं
- चरागाह और चारे के लिए भूमि:
- पशुपालन के लिए आवश्यक चारे का उत्पादन
- भारत में बड़ी संख्या में पशुधन को समर्थन प्रदान करती है
- बंजर और कृषि अयोग्य भूमि:
- रेगिस्तान, पहाड़ी क्षेत्र, दलदल, बर्फीले क्षेत्र जहां कृषि संभव नहीं है
- इनका उपयोग अन्य आर्थिक गतिविधियों जैसे पर्यटन, खनन आदि के लिए किया जा सकता है
- परती भूमि:
- चालू परती: अल्पकालिक अवधि (1-2 वर्ष) के लिए बिना बोए छोड़ी गई भूमि
- अन्य परती: लंबी अवधि (2 वर्ष से अधिक) के लिए बिना उपयोग छोड़ी गई भूमि
- गैर-कृषि उपयोग भूमि:
- आवासीय, औद्योगिक, वाणिज्यिक और सार्वजनिक उपयोग के लिए भूमि
- सड़कें, रेलवे, नहरें, बांध और अन्य बुनियादी ढांचा
- कृषि भूमि:
भारत में भूमि उपयोग को प्रभावित करने वाले कारक:
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- जलवायु और मिट्टी की स्थिति
- जनसंख्या दबाव और शहरीकरण
- तकनोलॉजी और आर्थिक विकास
- सरकारी नीतियां और भूमि सुधार
- वैश्वीकरण और बाजार की मांग
भारत में भूमि के सतत उपयोग के लिए उपाय:
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- मृदा संरक्षण
- वनीकरण और पुनर्वनीकरण
- भूमि उपयोग योजना और क्षेत्रीकरण
- सतत कृषि पद्धतियों का प्रोत्साहन
- भूमि सुधार और पुनर्वास